सूचना प्रौद्योगिकी
भारतीय खाद्य निगम के भावी पुनर्गठन में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका
जबकि अब तक लागू की गई सूचना प्रौद्योगिकी की पहलों ने भारतीय खाद्य निगम की कार्य कुशलता को काफी प्रभावी ढंग से सुधारने में योगदान दिया है। सूचना प्रौद्योगिकी भविष्य में संगठन की कुशलता को सुधारने में कई तरह से मददगार हो सकती है।
भारतीय खाद्य निगम का काम प्राथमिक तौर पर एक सप्लाई चेन मैकेनिज्म की तरह है, जिसमें विभिन्न मंडियों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से खाद्यान्न की अधिप्राप्ति की जाती है और फिर उसे रेल अथवा सड़क मार्ग द्वारा भारतीय खाद्य निगम के विभिन्न डिपों में पहुंचाया जाता है और अंत में, किए गए आबंटन के अनुसार लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं (OWS) के लिए राज्य एजेंसियों को वितरित किया जाता है। ऐसे कार्यों के लिए वेयरहाऊस प्रबंधन प्रणाली (WMS) अपनाई जानी आवश्यक है जो विभिन्न डिपुओं में और डिपुओं से खाद्यान्न के परिचालन तथा भंडारण को नियंत्रित कर इसमें शामिल विभिन्न प्रक्रियाओं जैसेकि अधिप्राप्ति, भंडारण एवं परिचालन को स्वाचालित कर आपूर्त्ति श्रृंखला प्रबंधन के सुधार में सहायता कर सकेगी। वर्तमान में, क्रियान्वित सूचना प्रौद्योगिकी एप्लीकेशनस् एकाकी समाधानों के रूप में कार्य कर रहे हैं और इन्हें पूर्ण समाधान के रूप में एकीकृत नहीं किया गया है जो अनुकुलतम उपयोग और कम लागत सुनिश्चित कर सहायता कर सके। विभिन्न मॉड्यूल जो सूचना प्रौद्योगिकी का अंग हैं, वे भारतीय खाद्य निगम की रीढ़ की हड्डी बनकर FCI के कार्यों के विभिन्न स्तर पर आने वाली प्रमुख चुनौतियों का सामना करेंगे और कार्य कुशलता लाने में सहायक होंगे। कुछ महत्वपूर्ण पहल जो मॉड्यूल्स का भाग हो सकती हैं वे इस प्रकार हैं
2.1 अधिप्राप्ति- वर्तमान में, मंडियों में भारी मात्रा में अधिप्राप्ति की जाती है जहां किसान खाद्यान्न लाते हैं जिसे आढ़तियों द्वारा खरीदा जाता है और जो किसानों और भारतीय खाद्य निगम के बीच बिचौलिये का काम करता है। आढ़तिया आपूर्त्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और वह यह सुनिश्चित करता है कि भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त किया गया खाद्यान्न गुणवत्ता विनिर्दिशों को पूरा करता है, और वह भारतीय खाद्य निगम से भुगतान प्राप्त कर आगे किसानों को प्रभार काटने और जो कुछ अग्रिम उसने किसानों को ऋण के रूप में दिया है, उसे काटने के बाद भुगतान करता है। इस प्रकार आढ़तिया की भूमिका आपूर्त्ति श्रृंखला में अत्यावश्यक लगती है लेकिन इसके साथ लागत जुड़े होने के कारण यह प्रणाली में कोई कार्य कुशलता नहीं लाता है।
सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग अधिप्राप्ति प्रक्रिया में आढ़तियों की भूमिका को समाप्त अथवा कम कर सकता है। आज विभिन्न सरकारी क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी के बढ़ते हुए उपयोग के साथ, हमारे सामने एक ऐसा परिदृश्य सामने आया है जहां भूमि का रिकार्ड कम्प्यूटरीकृत हैं, अधिकतर किसानों के पास आधार नं. हैं और उनके पास बैंक खाते तथा मोबाइल फोन भी हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से यदि हम किसानों के भूमि रिकॉर्ड डेटा के आधार नं. से जोड़ देते हैं और उनका बैंक खाता सं. व किसान का मोबाइल नं. भी इससे जोड़ देते हैं तो वास्तव में हम मंडी में आने वाले वास्तविक खाद्यान्न का पहले से ही अनुमान लगा सकेंगे। विशेष रूप से डिजाइन किए गए मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से, किसान भारतीय खाद्य निगम अधिप्राप्ति पोर्टल पर स्वयं को रजिस्टर करा सकते हैं और वे उन तिथि और मंडी को चुन सकते हैं जिसको वे अपना खाद्यान्न बेचने के लिए लायेंगे। इसके आधार पर प्रत्येक किसान को मंडी में खाद्यान्न बेचने का निश्चित दिन और निश्चित समय मिल सकता है। प्रत्येक किसान के लिए दो दिन की एक प्रतीक्षा खिड़की होगी जो विलम्ब अथवा अन्य आपातकालीन परिस्थिति में उन्हें अनुमति प्रदान कर सकेगी। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि मंडी में आने वाले खाद्यान्न पर नियंत्रण रखा जाए और मंडी में किसानों को खाद्यान्न स्वीकार किए जाने में होने वाले विलम्ब के कारण लगने वाले अतिरिक्त प्रभार को वहन नहीं करना पड़ेगा। मंडी की कार्य प्रणाली भी बेहतर ढंग से काम करेगी, जब मंडी कार्मिकों को यह पता होगा कि निश्चित दिन कितने किसान आने वाले हैं। इससे बैग तैयार करने, भंडारण और परिचालन की तैयारी में मदद मिलेगी ताकि हमें ऐसी स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा जहां मंडी में से काफी बड़ी मात्रा में खाद्यान्न को उठाने की व्यवस्था के इंतजार में उसे छोड़ दिया जाता है।
ऐसे किसान जिनके पास आधार नं. है, के द्वारा लाया गया खाद्यान्न भारतीय खाद्य निगम द्वारा स्वीकाकृत कर लिया जाता है तो ऑटोमेटिक भुगतान प्रणाली से किसान के बैंक खाते में इलैक्ट्रानकली पैसे जमा करने में सहायता मिल सकती है। इसमें चैक जमा करने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी और किसानों को उनका देय मिलने में होने वाली परेशानी से भी छुटकारा मिल जाएगा। इस प्रकार से, अधिप्राप्ति कार्यों में सूचना प्रौद्योगिकी के प्रयोग से किसानों और भारतीय खाद्य निगम दोनों की खर्च होने वाली लागत कम हो जाएगी और यह भारतीय खाद्य निगम की परिवहन तथा भंडारण का कुशल और अत्यधिक उपयोग करने में सहायक होगा। इससे भारतीय खाद्य निगम की अधिप्राप्ति लागत में 15 से 20 % की बचत होगी। जो प्रतिवर्ष लगभग 10 से 15,000 करोड़ रुपये होगी।
2.2 परिचालन : सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग अधिप्राप्ति वाले क्षेत्रों से खपत वाले क्षेत्रों तक खाद्यान्न के परिचालन के लिए लॉजिस्टिक के न्यूनतम उपयोग में सहायता प्रदान कर सकता है। देश में खाद्यान्न उत्पादन इस प्रकार से होता है कि केवल पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश में अतिरिक्त गेहूं पैदावार होती है जिसे देश के अन्य राज्यों में भेजा जा सकता है। इसी प्रकार से पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में अतिरिक्त चावल पैदा होता है जो अन्य राज्यों को भेजा जा सकता है। इन खाद्यान्नों का परिचालन, संबंधित राज्यों में उपलब्धध भंडारण सुविधा के साथ-साथ टीपीडीएस/ओ डब्ल्यू एस/ एन एफ एस ए के अंतर्गत उनकी आवश्यकताओं पर भी निर्भर करता है। इसके साथ ही परिचालन रेल नेटवर्क, सड़क नेटवर्क और जलमार्गों के परिचालन का सम्मिश्रण है। इस सम्मिश्रण के होते हुए भी एक प्रभावी परिवहन योजना जो परिचालन की न्यूनतम लागत के साथ ही भंडारण व्यवस्था का पूर्ण उपयोग कर सके के लिए एक प्रभावी सूचना प्रौद्योगिकी आधारित प्रणाली आवश्यक है जो परिवहन का सबसे कुशल मॉडल प्रदान कर सके। यह स्टॉक के परिचालन की रियल टाइम निगरानी भी मुहैया कराएगा जो कि डेमरेज लागत के रूप में हुई मार्गस्थ हानि को कम करने में भी सहायता करेगा। विशिष्ट वैगनों के माध्यम से खाद्यान्न की भंडारण क्षमता को आधुनिक बनाने और भारी मात्रा में खाद्यान्न परिचालन के साथ ही विशिष्ट वैगनों का अधिकतम उपयोग करते हुए पूर्ण परिचालन प्रणाली पर निगरानी रखकर सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग कार्य कुशलता लाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। परिचालन में ऐसी सूचना प्रौद्योगिकी आधारित प्रणाली अवश्य ही महत्वपूर्ण रूप से लागत कम करेगी।