बिक्री
टीपीडीएस का अवलोकन
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खाद्यान्नों की कमी के कारण वर्ष 1942 के आस-पास देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की धारणा विकसित हुई और खाद्यान्न के वितरण में सरकारी हस्तक्षेप की शुरुआत हुई। खाद्यान्न के वितरण में सरकार का यह हस्तक्षेप खाद्यान्न के अभाव के समय में और तत्पश्चात, प्रमुख शहरों, कस्बों और कुछ खाद्यान्न की कमी वाले क्षेत्रों में जारी रहा । देश में प्रत्येक पंचवर्षीय योजना प्रणाली के अंतराल के साथ-साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली/ राशन प्रणाली की इस नीति में कई बदलाव आए । सातवीं पंचवर्षीय योजना मे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत पूरी जनसंख्या को लाने की एक निर्णायक भूमिका सौंपी गई और यह देश की अर्थव्यवस्था में एक स्थाई विशेषता बन गई ।
भारत सरकार, सस्ते दाम पर सार्वजनिक वितरण करके खाद्य सुरक्षा के निश्चित उद्देश्यों को पूरा करती है । वर्तमान परिदृश्य में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयास करती है – किसानों को उनके उत्पाद के लिए समर्थन मूल्य दिलाना और उचित मूल्य पर खाद्यान्न की आपूर्ति करना । समर्थन मूल्य के तहत अधिप्राप्त स्टॉक से भारत सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत प्रतिमाह प्रत्येक राज्य को वितरण के लिए एक निर्धारित मात्रा जारी करती है । भारत सरकार के इस मिशन को भारतीय खाद्य निगम द्वारा ऑपरेशनल स्तर पर वास्तविकता में बदला जाता है । बिक्री प्रभाग उक्त आवंटन को क्षेत्रीय कार्यालयों को सूचित करता है । राज्य सरकार से उप- आवंटन प्राप्त होने पर, क्षेत्रीय कार्यालय जिला स्तर पर पूर्व भुगतान के आधार पर, संबंधित राज्य सरकार/ उनके नामितियों को स्टॉक जारी करने के लिए जिला कार्यालयों को निर्देश जारी करता है ।
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (T.P.D.S.)
गरीबी रेखा से नीचे की आबादी को खाद्यान्न उपलब्ध कराने, इसके शहरों तक सीमित होने, ग्रामीण गरीबों का अधिकतम ध्यान रखने के साथ राज्यों में इसकी नगण्य कवरेज होने और परिवहन की कमी तथा वितरण के लिए जवाबदेही व्यवस्था की कमी के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विफलता की व्यापक रूप से आलोचना की गई । इसे ध्यान में रखते हुए, गरीबी रेखा से नीचे (बी.पी.एल) के परिवारों को विशेष कार्ड जारी करके और वितरण प्रणाली की बेहतर निगरानी के साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत उन्हें एक विशेष रियायती मूल्य पर आवश्यक वस्तुओं की बिक्री के द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को व्यवस्थित बनाने के लिए भारत सरकार ने दिनांक 01.06.1997 से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली योजना (त्रिपुरा, हरियाणा और गुजरात राज्यों के लिए दिनांक 01.05.1997 से) की शुरुआत की । गरीबी रेखा से ऊपर के संबंधित परिवारों को ए.पी.एल परिवारों के रूप में वर्गीकृत किया गया ।
भारत सरकार ने, पहले पहचाने गई बीपीएल आबादी में से गरीब आबादी के सबसे गरीब लोगों को चावल 3/- रुपए प्रति किलो और गेहूं 2/- रुपए प्रति किलो की दर से जारी करने का फैसला किया और उन्हें अंत्योदय परिवारों के रूप में वर्गीकृत किया गया । अतः वर्ष 2000 से, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में परिवारों की तीन श्रेणियां अर्थात एपीएल, बीपीएल और एएवाई परिवार आती हैं । इनके लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत श्रेणीवार अलग – अलग केंद्रीय निर्गम मूल्य हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत, ग्रामीण क्षेत्रों की 75% आबादी तक और शहरी क्षेत्रों की 50% आबादी को खाद्य सुरक्षा के लिए पात्र परिवारों के रूप में पहचाना जा सकता है। पात्र परिवारों की पहचान दो श्रेणियों में की जाएगी-
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अंत्योदय अन्न योजना के तहत कवर्ड परिवार (25 दिसंबर, 2000 को केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई अंत्योदय अन्न योजना स्कीम के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए केन्द्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट तय सीमा तक पहचाने गए परिवार)।
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प्राथमिकता परिवार (संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट दिशा-निर्देशों के अनुसार पहचाने गए परिवार)।
अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले प्रत्येक परिवार प्रति माह 35 किलोग्राम खाद्यान्न पाने का पात्र होगा। प्राथमिक परिवार से संबंधित हर व्यक्ति प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न पाने का पात्र होगा। यह खाद्यान्न, चावल 3 रु. प्रति किलोग्राम, गेहूं 2 रु. प्रति किलोग्राम और मोटे अनाज 1 रु. प्रति किलोग्राम के मूल्यों पर मुहैया कराया जाएगा।
सितंबर 2015 तक, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 13 राज्यों / संघ शासित प्रदेशों अर्थात बिहार, चंडीगढ़ , छत्तीसगढ़ , दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में लागू किया गया । पश्चिम बंगाल में भी आंशिक तौर पर 7 जिलों कूचबिहार, उत्तर दिनाजपुर , दक्षिण दिनाजपुर हुगली, बंकूरा ,पूरब मेदिनीपुर एवम पश्चिम मेदिनीपुर में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिकतम लागू किया गया है ।
उत्तराखण्ड राज्य में अक्तूबर 2015 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया जा रहा है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भारतीय खाद्य निगम की भूमिका
भारतीय खाद्य निगम की भूमिका राज्यों / संघ शासित क्षेत्रों के लिए खाद्यान्न की आपूर्ति भारत सरकार द्वारा किए गए आवंटन अनुसार लागू केन्द्रीय निर्गम मूल्य पर की जाए यह सुनिश्चित करना है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खाद्यान्न का स्टॉक संयुक्त नमूना पद्धति के माध्यम से जारी किया जाता है। इसके अलावा, भारतीय खाद्य निगम के परिसर से एक बार खाद्यान्न के उठान और बाहर ले जाने के बाद उस पर भारतीय खाद्य निगम का कोई नियंत्रण नहीं होता है।
उचित दर की दुकानों के माध्यम से लक्षित लाभार्थियों को खाद्यान्न का वितरण करने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य / संघ शासित प्रदेश सरकारों की है।
मूल्य निर्धारण
उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, भारत सरकार समय-समय पर गेहूं और चावल के केंद्रीय निर्गम मूल्य निर्धारित करता है जो देश भर में एक समान होते हैं। दिनांक 01.07.2002 से गेहूं और चावल के वर्तमान केन्द्रीय निर्गम मूल्य निम्नलिखित हैं:-
(दर : रुपए / क्विंटल)
जिंस |
ए.पी.एल |
बी.पी.एल |
ए.ए.वाई |
एन.एफ़.एस.ए |
एन.एफ़.एस.ए के अतिरिक्त |
---|---|---|---|---|---|
गेहूं |
610 |
415 |
200 |
200 |
610 |
चावल |
830 |
565 |
300 |
300 |
830 |
यदि, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तरांचल और पूर्वोत्तर राज्यों के राज्यों में कॉमन चावल जारी किया जाता है, तो उसके लिए लागू कीमत रु.795/- प्रति क्विंटल है।
वैधता
भारत सरकार, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खाद्यान्न (गेहूं और चावल) का आवंटन मासिक आधार पर करती है और प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिए आवंटन आदेश जारी करती है और यदि आवश्यक हो तो समय-समय पर इसमें संशोधन करती है।
मंत्रालय ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खाद्यान्न के उठाने की वैधता अवधि के पुनर्वैधीकरण / विस्तार संबंधी प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए 28 जुलाई 2014 को निर्देशों में संशोधन किया है । प्रत्येक आवंटन माह के लिए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत आबंटित खाद्यान्न के उठाने की वैधता अवधि 30 दिन होगी, जोकि पूर्ववर्ती आवंटन माह के पहले दिन से शुरू और पूर्ववर्ती आवंटन माह के अंतिम दिन को समाप्त होगी। उदाहरण के लिए, अप्रैल के लिए आवंटन की वैधता अवधि 1 मार्च से 31 मार्च तक होगी।
मंत्रालय ने, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों के लिए खाद्यान्न की लागत भारतीय खाद्य निगम के पास इतना पहले अग्रिम रूप में जमा कराना अनिवार्य कर दिया है ताकि लिफ्टिंग का कार्य पिछले महीने के अंत तक पूरा हो सके। इसके अलावा, खाद्यान्नों की लागत जमा कराने और लिफ्टिंग दोनों को 15 दिन (प्रत्येक) बढ़ाने के लिए महाप्रबंधक (क्षेत्र) और कार्यकारी निदेशक (अंचल), भारतीय खाद्य निगम को प्रदत्त शक्तियाँ जारी रहेंगी। निर्धारित वैधता अवधि के बाद 30 दिनों से ऊपर की अवधि के मामले को संबंधित राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा मंत्रालय भेजा जाएगा।
गुणवत्ता पुष्टीकरण
राज्य सरकार / उनके द्वारा नामित व्यक्तियों द्वारा खाद्यान्न का उठाव किया जाता है। स्टॉक के जारी करने से पहले, उन्हें स्टॉक की जांच करने और गुणवत्ता के बारे में खुद को संतुष्ट करने की अनुमति दी जाती है।
राज्य सरकार, दुकानों और को-ओपरेटिव्स निर्गम को जारी किए जाने वाले स्टॉक की संयुक्त रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए जांच की जाती है कि क्या निर्गत किया गया स्टॉक मानकों को पूरा करते हैं। डिलीवरी लेने वाली एजेंसी के अधिकृत प्रतिनिधि की उपस्थिति में एक प्रतिनिधिक नमूना लिया जाता है। इस नमूने को अच्छी तरह से मिलाया जाता है और उसे तीन बराबर भागों में विभाजित किया जाता है और इन नमूनों को एक साथ सील किया जाता है। इन नमूनों मे से एक नमूना डिलीवरी लेने वाले अधिकृत प्रतिनिधि को दिया जाता है, एक नमूना भारतीय खाद्य निगम के जिला कार्यालय को भेजा जाता है और एक नमूना उस डिपो में रखा जाता है जहां से डिलीवरी होती है। जारी किए गए खाद्यान्न के नमूनों को गुणवत्ता के प्रतीक स्वरूप 3 महीने की अवधि के लिए रखा जाता है।
उपरोक्त के अलावा, प्राप्तकर्ता द्वारा भारतीय खाद्य निगम डिपो को एक प्रमाण-पत्र आवश्यक देना होता है कि वह जारी किए गए खाद्यान्न की गुणवत्ता से संतुष्ट है।